हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अखबारो से आशा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की अखबारों के बाजारीकरण एवं गिरती दशा पर एक कविता ‘अखबारो से आशा‘। )
☆ अखबारो से आशा ☆
खबरे कम विज्ञापनो की दिखती भरमार
बदल चुके है रूप रंग अपना सब अखबार
वास्तविकता से निरंतर होते जाते दूर
पत्रकारिता कर रही धन ले अधिक प्रचार
कहलाते जनतंत्र के रखवाले अखबार
पर अब वे देते कहाॅ उंचे सही विचार?
पाठक पा पाता नहीं पढने से संतोष
समाचार मिलते हुए अनाचार व्यभिचार
सत्य न्याय प्रियता से कम होता दिखता प्यार
बढता जाता झूठ गलत बातो पर अधिकार
भूल रहे संस्थान सब अपने शुभ उद्धेश्य
लगता है हो गये है व्यापारिक बाजार
बदल रहा है आजकल जब सारा संसार
हर एक क्षेत्र में बढ रहा अनुचित अत्याचार
मानव मन विचलित तथा है अनीति मे लिप्त
आशा है अखबार से वे कुछ करें सुधार
नीति नियम अवमानना से बढती तकरार
सत्य ही हर कल्याण का है पावन आधार
चाहते हंै आशा किरण हो लोग निराश
पत्र दे विमल प्रकाश तो कट सकता अंधियार
प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव ’विदग्ध’
ए-1,शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर
मो. 9425484452