प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ पत्थर की महिमा ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम।

मानवता  को धारकर,  पुलकित कर हर रोम।।

 *

पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव।

उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।।

 *

पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर।

करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।।

 *

पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून।

दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।।

 *

पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़।

पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।।

 *

पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार।

बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।।

 *

सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज।

करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।।

 *

पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान।

पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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