श्री अमरेंद्र नारायण
( आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की ओजस्वी कविता प्रस्तर की छाती तोड़ चलें)
☆ प्रस्तर की छाती तोड़ चलें ☆
प्रस्तर की छाती तोड़ चलें
निर्झर का कलकल गान करें
उत्साह ,शक्ति और भक्ति से
संजीवन हम पाषाण करें!
ईश्वर ने मन की शक्ति दी
संघर्ष हेतु क्षमता दी है
बाधाओं को कर सकें पार
मानव में कर्मठता दी है
हम एक पांव आगे धरते
दूजा तो स्वयं उठ जाता है
जो लक्ष्य दूर था दीख रहा
कुछ और निकट आ जाता है!
जब साथ हमारे हों अपने
संघर्ष गान बन जाता है
हर प्रस्तर में जीवन आता
उत्साह और बढ़ जाता है
आओ हम मिलकर साथ चलें
मरुथल में हरियाली लायें
हर मुखड़े पर मुस्कान खिले
जीवन संगीत सुना जायें!
यह सर्वसहा वसुधा अपनी
भला कब तक इतनी व्यथा सहे
पाषाण तोड़ निर्झर लायें
रसवंती जल की धार बहे!
© श्री अमरेन्द्र नारायण
जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर रचना स्वरचित