सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

विपदा भू पर आई

(अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष   सुश्री मालती मिश्राजी  की  अतिसुन्दर सामयिक कविता।)
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
दसों दिशाएँ हुईं प्रदूषित,
विपदा भू पर आई।
नदियाँ नाले एक हो रहे,
रहे धरा अब प्यासी।
नष्ट हो रही हरियाली भी
मन में घिरी उदासी।
पीने का पानी भी बिकता,
बाजारों  में भाई…….
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
हरियाली की चादर ओढ़े,
थी धरती मुस्काती।
लहर-लहर निर्मल धलधारा,
देख सदा हर्षाती।
वन-कानन अरु पर्वत ऊँचे,
गौरव-भू कहलाते।
मस्त पवन फिर दसों दिशा में,
नित सौरभ फैलाते।
मधुर भोर की शीतल बेला
आज पड़े न दिखाई…….
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
उन्नति की खातिर मानव ने
जंगल नदियाँ पाटे।
हरियाली को छीन धरा से,
नकली पौधे बाँटे।
जहर घोलकर अब नदियों में
बनाये कारखाने।
धरती का सौंदर्य मिटा कर,
मन ही मन  हर्षाने ।
अपने सुख खातिर मानव ने,
भू की खुशी मिटाई…….
धरती से अंबर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
©मालती मिश्रा ‘मयंती’✍️
दिल्ली
मो. नं०- 9891616087
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

5 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
मालती मिश्रा

धन्यवाद आ०

Sudha Singh

वाह वाह. मालती जी बहुत खूबसूरती से आपने आज की समस्या को उभारा है.

ratan lal menariya

आ.मालती जी बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना।

Dr. Prem Krishna Srivastav

सामयिक सारगर्भित पर्यावरण सचेतक रचना

योगेन्द्र योगी

बहुत ही बेहतरीन रचना आज के परिवेश में