(ई-अभिव्यक्ति में प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रेनू सिंह जी का हार्दिक स्वागत है। आपने हिन्दी साहित्य में पी एच डी की डिग्री हासिल की है। आपका हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू में भी समान अधिकार है। एक प्रभावशाली रचनाकार के अतिरिक्त आप  कॉरपोरेट वर्ल्ड में भी सक्रिय हैं और अनेक कंपनियों की डायरेक्टर भी हैं। आपके पति एक सेवानिवृत्त आई एफ एस अधिकारी हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आप  साहित्य सेवा में निरंतर लगी रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “फितरत।)

? “फितरत” डॉ. रेनू सिंह ?

ज्वालामुखी के ढेर पर बैठा है आदमी,

 फट जाये कौन से पल जाने न आदमी,

मंसूबे तो बनाता है पर, पल की ख़बर नहीं,

 नाक़ामियों पे अश्क़ बहाये है आदमी,

जीवन का फ़लसफ़ा ही समझे न ये कभी,

कि कोई न साथ होगा जब, जाएगा आदमी,

देखे हज़ार ख़ुशियाँ, देखे हज़ारों ग़म

फिर भी न रंज-ओ-ग़म से उबरे है आदमी,

चमका कभी क़िस्मत से जो क़िस्मत का सितारा,

तो चराग़ इबादत के बुझाये है आदमी,

देता है सदा तंज़ जो औरों को हर क़दम,

खुद अपने ग़रीबों में क्यूँ झाँके न आदमी,

 दीं हैं हज़ार नेमतें क़ुदरत की ख़ुदा ने फिर,

 फ़र्ज़-ओ-करम से पीठ क्यूँ फेरे है आदमी

उठाये है रोज़ क़समें ईमान धरम की,

 पर ईमान कर सरहाना सो जाये आदमी,

इंसान काम आए है इंसान के मगर क्यूँ ,

इंसान का ही ख़ून बहाये है आदमी,

समझाये कोई इसको समझाये या ख़ुदा,

ख़ुद को न ऐसे गर्त में बिखराये आदमी।

© डा. रेनू सिंह 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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