सुश्री स्वप्ना अमृतकर
*बस इतना ही चाहता हूँ….*
(सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी मराठी की एक बेहतरीन कवियित्रि हैं. प्रस्तुत है उनकी एक हिन्दी गजल।)
अक्सर बढ़ती महंगाई के बारे मे सोचता हूँ
सरकारी नए नियमों मे बस उलझ जाता हूँ ।
अख़बार मे जी एस टी दर पे ग़ुम हो जाता हूँ
कहीं अख़बार न महंगे हो जाएं इससे डरता हूँ ।
अवसर हो तभी बाज़ार में कुछ लेने जाता हूँ
बटुए में कम पैसे होने से ख़ुद पे शरमाता हूँ ।
आवाम को हर जग़ह कतारों मे देखता हूँ
राशन के लिए लोगों को व्यस्त ही पाता हूँ ।
आजीवन मैं कठिनाइओं से दोस्ती निभाता हूँ
बच्चों को संस्कार की मधुशाला भी बाँटता हूँ ।
आयु अधिक होने से थोड़ा बहुत थकता हूँ
विचारों की गहराई मे नम आँखों से सोता हूँ ।
अच्छे दिन तो आते रहेंगें रबसे दुआ करता हूँ
कुछ भी हो साँसो को मुफ़्त ही लेना चाहता हूँ ।
© स्वप्ना अमृतकर (पुणे)