डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
☆ बैसाखी पर्व विशेष – फिर सबकी बैसाखी है… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆
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महक उठा है गुलशन-गुलशन
महुआ टपके महके चंदन
यह उन की बैसाखी है…
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लतायें महकी मृदुल- मृदुल
हुईं हवाएं चंचल – चंचल
यह उन की बैसाखी है…
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प्रकृति का हर काम है जारी
रात दिन आयें बारी – बारी
यह उन की बैसाखी है…
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धुंध छटी सब गहरी गहरी
गेहूँ की बाली हुई सुनहरी
यह उन की बैसाखी है….
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जो क़ुदरत की मौज में रहते
दुख – सुख दोनों हँसकर सहते
यह उन की बैसाखी है…
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याद करो गुरुओं की वाणी
सुखी बसे हर एक प्राणी
फिर सब की बैसाखी है…
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खेतों से दाने घर आएं
खुशी से दामन सब भर जाएं
फिर सब की बैसाखी है…
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नफ़रत के बुझ जाएं चिराग़
प्यार से महके हर इक बाग़
फिर सब की बैसाखी है…
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डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक
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