प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की श्रीमद भगवतगीता  पर आधारित कविता भगवत गीताई-अभिव्यक्ति  प्रतिदिन सतत  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  द्वारा रचित  श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद  महाकाव्य से एक श्लोक, उसका पद्यानुवाद एवं अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित कर रहा है। वर्तमान में 18 वे अध्याय के श्लोक का प्रकाशन हो रहा है। आप उन्हें प्रतिदिन आत्मसात कर  सकते हैं ।  ) 

☆ भगवत गीता ☆

श्री कृष्ण का संसार को वरदान है गीता

निष्काम कर्म का बडा गुणगान है गीता

दुख के महासागर मे जो मन डूब गया हो

अवसाद की लहरो मे उलझ ऊब गया हो

तब भूल भुलैया मे सही राह दिखाने

कर्तव्य के सत्कर्म से सुख शांति दिलाने

संजीवनी है एक रामबाण है गीता

पावन पवित्र भावो का संधान है गीता

है धर्म का क्या मर्म कब करना क्या सही है

जीवन मे व्यक्ति क्या करे गीता मे यही है

पर जग के वे व्यवहार जो जाते न सहे है

हर काल हर मनुष्य को बस छलते रहे है

आध्यात्मिक उत्थान का विज्ञान है गीता

करती हर एक भक्त का कल्याण है गीता

है शब्द सरल अर्थ मगर भावप्रवण है

ले जाते है जो बुद्धि को गहराई गहन मे

ऐसा न कहीं विष्व मे कोई ग्रंथ ही दूजा

आदर से जिसकी होती है हर देष मे पूजा

भारत के दृष्टिकोण की पहचान है गीता

 

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_printPrint
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments