सुश्री रुचिता तुषार नीमा

(युवा साहित्यकार सुश्री रुचिता तुषार नीमा जी द्वारा आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता भीतर की बारिश ।) 

☆ कविता – भीतर की बारिश  🌧️☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

 भीग रही है धरती सारी

झूम रहा है नील गगन

हर तरफ है छटा निराली

नाच रहा मयूर हो मगन

 

तेरे करम की बारिश में

तर बतर है सारा चमन

मुझ पर भी रहम कर मालिक

धोकर मेरे अंतर का अहम

 

मुझको भी कर तू निर्मल

बहाकर मेरे सारे अवगुण

कि तुझमें ही रम जाऊ मैं

भूलकर सारे रंज ओ गम

 

कर दे तेरे करम की बारिश

बाहर भी और भीतर भी

तर हो जाए और तर जाएं

अबकी बारिश में फिर हम।

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments