हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भीड़ ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”
श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”
☆ भीड़ ☆
शोर है बाहर सड़कों पर……………….शायद।
कोई जुलूस निकल रहा है…….अरे यह क्या..?
सभी किसी को मार रहे है…………….शायद ।
भीड़………न्यायाधीश बन फैसला कर रही है।
हुजूम है सड़को पर………………………..शायद।
किसी सत्य को….गलत साबित करना है आज।
जन सैलाब है सड़को पर…………………शायद।
गुमराह लोग…….लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
कुछ हरे से…..कुछ नीले से…..कुछ भगवा से।
एक नज़र से देखो तो इंद्रधनुषी से दिखते हैं।
सब कोहराम मचाकर कुछ…… सिखा रहे हैं।
कुछ नादान से….मगर मुँह पर कपड़ा बांधकर।
ये देश कि संपत्ति को….नुकसान पहुँचा रहे हैं।
शायद युवा हैं….रोज़गार की मांग कर रहे है।
कुछ नहाये-धोये……सफेद कपड़े पहने से हैं।
एक……दूसरे की ओर…… इशारा कर रहे हैं।
शायद…
ये देश के कर्ता-धर्ता हैं तो नहीं, पर लग रहे हैं।
कुछ सहमे से..कुछ उलझे…मगर असंमजस में।
शायद…
कुछ अच्छे की आस में केन्डिल जला रहे है।
यह “भीड़” की ताकत का दुरूपयोग तो नही है।
© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल
(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में उप-प्रबन्धक हैं।)