डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मातृ दिवस के अवसर पर विशेष कविता माँ । )
☆ मातृ दिवस विशेष – माँ ☆
मां!
करुणा का सागर
लहराता जिसमें स्नेह अपार
मां रत्नो का आग़ार
बसा जिसकी आंखों में
ममता स्नेह दुलार
प्यारा सा घर संसार
बलिहारी जाता सारा संसार
मां!
पूजनीया
ममता का सागर लुटाती
दु:ख में आंसू बहाती
खुशी में नहीं फूली समाती
अपना भाग्य सराहती
मां!
प्रेरणादात्री,शक्तिपुंज
हज़ारों तूफान मन में समाए
आंचल में असंख्य ज़ख्म छिपाए
हर पल मुस्काती
सबका पथ प्रदर्शन करती
मां!
दया की प्रतिमूर्ति
बच्चों पर
जब दु:ख के बादल मंडराते
अपने भी पराए हो जाते
सुनामी जब जीवन में आता
सीना मां का फट जाता
वह धैर्य बंधाती
सबके मन में आस जगाती
समय कभी ठहरता नहीं
हर पल बदलता रहता
मां!
कानों में शहद घोलती
अमृत वर्षा करती
अपने आत्मजों को
अंगुली पकड़ चलना सिखाती
उसकी हर ज़रूरत पूरी करती
आपदा से बचाती
खुशियां उंडेलती
दु:खों को हर लेती
परिवार को एक-सूत्र में बांधती
हर पल आशीष बरसाती
वह प्यारी मां है
मां!
दया की प्रतिमूर्ति
जब दु:ख के बादल मंडराते
अपने भी पराए हो जाते
सुनामी जब जीवन में आता
सीना मां का फट जाता
वह धैर्य बंधाती
सबके मन में आस जगाती
समय कभी ठहरता नहीं
हर पल बदलता रहता
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
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