हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुक्ता जी के मुक्तक ☆ –डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

मुक्ता जी के मुक्तक 

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है  डॉ मुक्ता जी के अतिसुन्दर एवं भावप्रवण मुक्तक – एक प्रयोग।)

 

आओ! आज तुम्हारी मुलाकात

खुद से करवाऊं

मन की ऊहापोह से

रू-ब-रू कराऊं

यूं तो ज़िन्दगी में तूफ़ान

आते जाते रहेंगे

आओ!तुम्हें सागर की लहरों से

पार उतरना सिखलाऊं

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कौन, कब, कहां मिल जाये

नहीं मालूम

उजड़े गुलशन में

कब बहार आ जाए

नहीं मालूम

यूं तो कांटों से भरी है यह ज़िन्दगी

हमसफ़र कब तक साथ निभाये

नहीं मालूम

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तेरी यादों के बियाबां में

भटक रहा इत उत

तेरी तलाश में

दरश पाने को बेकरार

मन बावरा

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मिलते हैं लोग

इस जहान में

बिछुड़ जाने को

बदलते मौसम की तरह

बदल जाती है पल भर में

उनकी फि़तरत, उनका मिजाज़

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समय की सलीब पर

लटका इंसान

आत्मावलोकन करता

अंतर्मन में झांकता

रोता चिल्लाता

प्रायश्चित करता

खुद की तलाश में

मरू सी प्यास लिए

इत उत भटकता

परन्तु उदासमना

खाली हाथ लौट जाता

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© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com