श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना ।पिता का  हाथ, अंधेरे में उजाले का साथ है)

☆ मुक्तक – ।। पिता का  हाथ, अंधेरे में उजाले का साथ है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

माँ स्नेह का    स्पर्श     तो

पिता धूप में      छाया   है।

माँ घर करती     देखभाल

तो पिता  धन     लाया   है।।

माँ बाप  के       आजीवन

ऋणी हैं    हम  सब      ही।

इनसे ही   प्राप्त   हुई   हम

सब को           काया     है।।

[2]

माँ ममता    की मूरत    तो

जैसे पिता        साया     है।

माँ से सबने     ही     बहुत

प्यार दुलार        पाया.   है।।

जीवन में      आती        है

जब   भी            कठिनाई।

पिता ने   साथी.  बन   कर

हाथ       बढ़ाया            है।।

[3]

माँ बाप ने   ऊँगली  पकड़

चलना          सिखाया   है।

बड़ा कर के          लिखना

पढ़ना            बताया     है।।

पिता से ही        जाना    है

कैसे   बनना          मजबूत।

बाजार से     खिलौने     तो

पिता     ही       लाया     है।।

[4]

माँ खुला   आंगन         तो

पिता     जैसे       छत    है।

जमाने से        बचने    की

हर सीख    का     खत   है।।

हम हैं संसार में          बस

माँ बाप     की      बदौलत।

माता पिता से    ही मिलता

संस्कारों का     तत्व       है।।

[5]

माता पिता ही      समझाते

अपने पराये   का       अंतर।

हमें बड़ा करने को     करते

वह दोनों    ही     हर  जंतर।।

पिता का हाथ    लगता    यूँ

जैसे अंधेरे      में     उजाला।

माता पिता की     सेवा    ही

जैसे   हर    पूजन  मंतर   है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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