प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ कविता – मकर संक्रांति ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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भारत त्योहारों का देश है अनोखा अति मतवाला।
पग-पग पर यह तो नित खुशियां बिखेरने वाला।।
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रौनक है, नाच-गान और मस्तियों के मेले हैं।
सारे उमंग में भरे हैं, कोई भी यहां नहीं अकेले हैं।।
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कहीं सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व है।
तो कहीं मतवाले पोंगल पर हो रहा सबको गर्व है।।
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कहीं लोहड़ी का हो रहा सच में व्यापक सम्मान है।
तो कहीं नदी स्नान से पावनता की बढ़ी आन है।।
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संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का उत्सव है।
तो भांगड़े की तान पर थिरकता हुआ मानव है।।
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खिचड़ी का स्वाद है, तो तिली के लड्डू का जलवा है।
बिखर रहा भाईचारा, प्रेम, नहीं किसी तरह का बल्ला है।।
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आकाश में छाई है आकर्षक पतंगों की निराली छटा।
नदियों के किनारे लगे झूले, भरे मेरे, है सुंदर घटा।।
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दान-पुण्य के प्रति व्यापक अनुराग पल रहा है।
जो है उल्लास से दूर वह आँखों को मल रहा है।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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