श्री हरभगवान चावला
( ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी का हार्दिक स्वागत।sअब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘यज्ञ ’।)
☆ कविता – यज्ञ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
अग्नि है
मंत्र हैं
आहुतियाँ हैं
पुरोहित हैं
यजमान हैं
परन्तु यह यज्ञ नहीं है मित्रो !
देखते नहीं
अग्नि हवनकुंड में नहीं
खेतों, खलिहानों, बस्तियों में जल रही है
मंत्रों को ध्यान से सुनो
इनमें विश्रांति नहीं, प्रलय की लय है
पुरोहितों को देखो
इनके चेहरे कापालिकों जैसे हैं
इनके गले में नरमुण्ड लटके हैं
यह यज्ञ नहीं है मित्रो !
कापालिकों का भयावह अनुष्ठान है
यजमान को कपाल बनाने में ही
अनुष्ठान की सिद्धि है
आहुतियों के लिए हुलस-हुलसकर
जन-जन का आह्वान करते हुए
क्या तुम्हें अपने आसपास
क़ब्रों से निकाल कर लाये गये
मुर्दे नहीं दिखाई देते?
क्या तुमने अपने चारों ओर
वशीभूत प्रेतात्माओं का घेरा नहीं देखा?
आश्चर्य!
कि तुम्हें रक्तपिपासु पिशाचों के
रक्तपात्र नहीं दीखते, न उनका हिंस्र नृत्य
मित्रो !
यज्ञ में विनम्र समर्पण होता है, उन्माद नहीं
सृष्टि को श्मशान और क़ब्रिस्तान में बदलना
इस उन्मादक अनुष्ठान का लक्ष्य है
यदि इस अनुष्ठान को यज्ञ मानने का
तुम्हारा दृढ़ निश्चय है
तो फिर इस ‘यज्ञ’ में
तुम्हारी संतानों का हविष्य होना तय है ।
© हरभगवान चावला