हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ये जग राई है ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई
सुश्री शुभदा बाजपेई
(सुश्री शुभदा बाजपेई जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप हिंदी साहित्य की ,गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी एक आपकी एक अतिसुन्दर कविता “ये जग राई है ”. )
☆ ये जग राई है ☆
कश्ती है या लंगर है
पानी-पानी कंकड़ है
सहरा-सहरा देखा है
शाने मस्त कलंदर है
मिट्टी- मिट्टी धरती है
उसके बीच समंदर है
उछल कूद ये जारी है
आदमी है या बंदर है
दौडा़ भागा जाता है
बच्चा बडा़ खेलंदर है
बाहर -बाहर दुनिया है
दुनिया घर के अंदर है
‘शुभदा” ये जग राई है
या तो सांप छछुंदर है
© सुश्री शुभदा बाजपेई
कानपुर, उत्तर प्रदेश