डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )
लेखनी सुमित्र की – दोहे
आंसू सूखे आंख के, सूख रही है देह।
इन यादों का क्या करूं, होती नहीं सदेह।।
याद तुम्हारी कुसुम -सी, खिली बिछी तत्काल ।
या समुद्र के गर्भ में, बिखरी मुक्ता माल।।
घन विद्युत सी याद है, देती कौंध उजास।
कभी-कभी ऐसा लगे, करती है परिहास।
सूना सूना घर मगर, दिखे नहीं अवसाद।
इसमें क्या अचरज भला, महक रही है याद।।
मास दिवस या वर्ष सब, होते गई व्यतीत।
किंतु याद की कोख में, है जीवन अतीत।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वाह क्या बात है