डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #45 – दोहे
प्यार प्रकट हमने किया, उसने दिया जवाब।
याद दर्द आंसू दिये, बिखराये सब ख्वाब।।
आंखें होती चार जब, जलता प्रेम प्रदीप।
मोती मिलकर जनमते, हो जाते तन सीप।।
सुध बुध अपनी भूलकर, खो बैठे सन्यास।
मुनि कौशिक जी ये हुए, रूपराशि के दास।।
बादल आकर छा गए, आंखों के आकाश।
मन की धरती सूखती, कौन बुझाए प्यास।।
गंध कहीं से आ रही म हक उठा मन देश।
बिखराये हैं आपने, शायद सुरभित केश।।
गलत सही जो कुछ कहो, याकि भाव अतिरेक।
जिसको मैं अर्पित हुआ, वह है केवल एक।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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