डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #52 – दोहे
मौन नहीं मुखरित हुआ, किया शब्द संधान ।
तुमने तो केवल सुनी, देहराग की तान ।।
आंखों में तस्वीर है शब्दों में तासीर ।
एकांगी हो पथ अगर, बढ़ जाती है पीर ।।
भिक्षुक से ज्यादा सदा, है दाता का मान ।
रखा कटोरा रिक्त तो यह भी है अहसान।।
मधुर मदिर मनभावनी, लजवंती अभिराम।
वय: संधि शीला सदृश्य, यह फागुनायी शाम।।
सौम्या, रम्याकामिनी, छवि सौंदर्य प्रबोध।
बसी रहो उर उर्वशी, एकमात्र अनुरोध ।
सम्मोहित ऐसा किया, लेता हिया हिलोर ।
कब संझवाती बीतती, कब होती है भोर।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
उत्कृष्ट दोहे