डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे। )
लेखनी सुमित्र की – दोहे
क्या मानक सौंदर्य का, रूप ,रंग ,विन्यास ।
याकि देह के पार से, झरता हुआ उजास।।
परमेश्वर की ज्योति के, आकृति जो अनुरूप।
सहज भाव से सभी ने ,कहा उसे ही रूप।।
व्यक्ति, वस्तु, सुंदर नहीं, सुंदर होती दृष्टि।
सुंदर मन ही देखता, सुंदर सारी सृष्टि।।
व्यक्ति रूप सुंदर लगे, जगता है अपनत्व।
संस्कार की सुरभि का ,घटता नहीं घनत्व।।
रूप परीक्षा के लिए, तनता नहीं वितान।
आकर्षण तो प्रीतिका, है पहला सोपान।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार अभिव्यक्ति