श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “
(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती हेमलता मिश्रा जी द्वारा विश्व कविता दिवस पर रचित विशेष कविता सुनो कविता। )
☆ विश्व कविता दिवस विशेष – सुनो कविता ☆
सुनो कविता
कविता दिवस पर रचना चाहती हूँ तुम्हें
जिसमें
गुनगुन निर्झर की
बोली सुने सृष्टि।।
कभी रोशनी की चादर से बुने दिन की कविता
कभी स्याह रेशम के ताने-बाने से बनी तारिका निशा की कविता।।
मानती हूँ कि बहुत गुनगुनाती है कविता मेरी
सूर कबीर तुलसी
रसखान की वाणी में
बहुत बोली है कविता!!
पर क्या आज वह वह बोलती है
जो बोलना चाहिए
क्या वह सुनाती है जो सुनाना चाहिए
वह दिखाती है जो दिखाना चाहिए।।
हाँ – – – सुनो कविता!!
सुनो कविता– सुनो ना
तुम्हें उगाने हैं बंजर में फूल
तुम्हें जगाने हैं बावरे बंजारे सपनें
तुम्हें जोड़नी है रिश्तों की टूटती डोर!!
बनना है तुम्हें वो साहित्य
जो समाज का दर्पण है!!
विश्व गुरु और सोन चिड़िया की कहानी वाला।।
चाणक्य और विदुर की रवानी वाला
अशफाक और आजाद की जवानी वाला।।
बनोगी ना?? रचोगी ना??चलोगी ना??
वहां तक मेरे साथ मेरी कविता।।
© हेमलता मिश्र “मानवी ”
नागपुर, महाराष्ट्र