सुश्री प्रभा सोनवणे
कविता
☆ वटवृक्ष सी पितरों की छाया… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆
महाराष्ट्र का एक छोटा सा गाँव,
हमारे पूर्वज–
वहाँ के वतनदार थे,
बुजूर्ग कहते थे उस गाँव और —
बहुत बडी हवेली की कहानी,
जिसे लोग “जगताप वाडा” कहते हैं ।
उसमे थे हाथी, घोडे, ऊँट भी कभी।
वो गाँव छोडकर
सदिया बीत गयी ।
लेकिन हम सोचते रहते हैं,
हमारे पडदादा के पडदादा,
रहे होंगे यहाँ के सेनापती,
हाथी, घोडों पर से,
की होगी लडाई—
दिवारों पर की ढाल- तलवारें यही
बताती हैं।
गुरूर आता है अपने आप पर,
कितने बडे खानदान से
ताल्लुख रखते हैं हम ।
हम एक बार ही गये थे,
उस जगह,
लेकिन बार बार महसूस
होता है,
वटवृक्ष सी पितरों की छाया है
मुझ पर —-
तभी तो जीते हैं,
शान से, बडे आराम से!
☆
© प्रभा सोनवणे
संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈