हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विधुर बंधुओं को समर्पित – आर्तनाद ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित विधुर बंधुओं को समर्पित एक कविता – आर्तनाद ।
श्री सूबेदार पाण्डेय जी के शब्दों में – ‘आर्तनाद’ का अर्थ है, दुखियारे के दिल की दर्द में डूबी आवाज। कवि की ये रचना उसी बिछोह के पीड़ा भरे पलों का चित्रण करती है। जब जीवन में साथ चलते-चलते जीवनसाथी अलविदा हो जाता है, तब रो पड़ती हैं दर्द में डूबी आँसुओं से भरी आँखें, और जुबां से निकलती है गम के समंदर में डूबी हुई आवाज। यह रचना समाज के विधुर बन्धुओं को समर्पित है।)
☆ विधुर बंधुओं को समर्पित – आर्तनाद ☆
हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई,
अब मैं तुमसे मिल न सकूंगा।
अपने सुख-दुख मन की पीड़ा,
कभी किसी से कह न सकूं गा।
घर होगा परिवार भी होगा,
दिन होगा रातें भी होगी।
रिश्ते होंगे नाते भी होंगे,
फिर सबसे मुलाकातें होगी।
जब तुम ही न होगी इस जग में,
फिर किससे दिल की बातें होंगी।
।। हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई ।।1।।
मेरे जीवन में ऐसे आई तुम,
जैसे जीवन में बहारें आई थी।
सुख दुःख में मेरे साथ चली,
कदमों से कदम मिलाई थी।
जब थका हुआ होता था मैं,
तुमको ही सिरहाने पाता था।
तुम्हारे हाथों का कोमल स्पर्श,
मेरी हर पीड़ा हर लेता था।
।। हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई ।।2।।
इस जीवन के झंझावातों में,
दिन रात थपेड़े खाता था।
फिर उनसे टकराने का साहस,
मैं तुमसे ही तो पाता था ।
रूखा सूखा जो भी मिलता था,
उसमें ही तुम खुश रहती थी,
अपना गम और अपनी पीड़ा,
क्यों कभी न मुझसे कहती थी।
।। हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई ।।3।।
मेरी हर खुशियों की खातिर,
हर दुख खुद ही सह लेती थी।
मेरे आँसुओं के हर कतरे को,
अपने दामन में भर लेती थी।
जब प्यार तुम्हारा पाता तो,
खुशियों से पागल हो जाता था।
भुला कर सारी दुख चिंतायें
तुम्हारी बाहों में सो जाता था।
।। हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई ।।4।।
तुम मेरी जीवन रेखा थी,
तुम ही मेरा हमराज थी।
और मेरे गीतों गजलों की,
तुम ही तो आवाज थी।
जब नील गगन के पार चली,
मेरे शब्द खामोश हो गये।
बिगड़ा जीवन से ताल-मेल,
मेरे हर सुर साज खो गये।
।। हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई ।।5।।
मँझधार में जीवन नौका की,
सारी पतवारें जैसे टूट गई हो।
तूफानों से लड़ती मेरी कश्ती,
किनारे पर जैसे डूब रही हो।
मेरे जीवन से तुम ऐसे गई,
मेरी बहारें जैसे रूठ गई हो।
इस तन से जैसे प्राण चले,
जीने की तमन्ना छूट गई हो।
शेष बचे हुए दिन जीवन के,
तुम्हारी यादों के सहारे काटूंगा,
अपने पीड़ा अपने गम के पल,
कभी नहीं किसी से बाटूंगा।
तुम्हारी यादों को लगाये सीने से,
अब बीते कल में मैं खो जाउंगा।
ओढ़ कफन की चादर इक दिन,
तुमसा गहरी निद्रा में सो जाऊंगा।
।। हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई ।।6।।
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
मोबा—6387407266