कर्नल अखिल साह 

(ई- अभिव्यक्ति में कर्नल अखिल साह जी का हार्दिक स्वागत है। आप एक सम्मानित सेवानिवृत्त थल सेना अधिकारी हैं। आप  1978 में सम्मिलित रक्षा सेवा प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान के साथ चयनित हुए। भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में प्रशिक्षण के पश्चात आपने इनफेंटरी की असम रेजीमेंट में जून 1980 में कमिशन प्राप्त किया। सेवा के दौरान कश्मीर, पूर्वोत्तर क्षेत्र, श्रीलंका समेत अनेक स्थानों  में तैनात रहे। 2017 को सेवानिवृत्त हो गये। सैन्य सेवा में रहते हुए विधि में स्नातक व राजनीति शास्त्र में स्नाकोत्तर उपाधि विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त किया । कर्नल साह एक लंबे समय से साहित्य की उच्च स्तरीय सेवा कर रहे हैं। यह हमारे सैन्य सेवाओं में सेवारत वीर सैनिकों के जीवन का दूसरा पहलू है। ऐसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी एवं साहित्यकार से परिचय कराने के लिए हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का हार्दिक आभार।   हमारा प्रयास रहेगा कि उनकी रचनाओं और अनुवाद कार्यों को आपसे अनवरत साझा करते रहें।  आज प्रस्तुत है उनकी कविता ‘शहीद ए वतन ‘

एक नागरिक के तौर पर शहीदों को समर्पित कविताएं भावनात्मक हो सकती है किन्तु, ऐसी कविता के पीछे निहित भावनाएं कोई सैन्य सेवारत ही समझ सकता है जो अपने साथी को तिरंगे के कफ़न  में लपेटकर उसके परिवार को सौंपता है। )

☆ शहीद ए वतन

सो रहा है अब जो बेखबर

तिरंगा बना है जिसका कफ़न,

वह अपना ही एक साथी है

जो हो गया शहीद ए वतन।

 

बस कल ही संग अपने

खुशी से लगा था चहक

यारों के साथ जाम टकराकर

मस्ती में रहा था वह बहक।

 

आज हमें वह छोड़ कर

हो गया है बेगाना,

चला गया अब बहुत दूर

वतन का अज़ब दीवाना।

 

जब बरस रहे थे अंगारे

चारों तरफ था हाहाकार,

फट रहे थे बम के गोले

घायलों का था चीत्कार…

 

तब भी मुड़कर ना देखा

ना सोचा एक भी पल

घर पर छोड़ आया जिन्हें

क्या होगा उनका कल..

 

बस आगे ही बढ़ता गया

मुसीबतों से बन अनजान,

दुश्मनों से जूझते जूझते

हो गया वह कुर्बान।

 

भुला सकेगा ना वक्त जिसको

सदा चमकेगा जिसका माथा,

मर कर भी जो अमर रहेगा

उस शहीद ए वतन की यह गाथा।

 

© कर्नल अखिल साह

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Pravin Raghuvanshi

Brilliant composition suffused with patriotism and emotions!

देश के वीर सपूतों और उनके शौर्य को समर्पित इस प्रेरणास्पद रचना हेतु कैप्टन रघुवंशी जी का आभार और बधाई।
– किसलय

Chhaya saxena

जय हिंद

Ashish

Wow!
Akhil the scholar-soldier.
Now that you have come out of your comfort zone, pl follow Gen Gurmit’s diktat – 1 every four days.
Once again, beautifully penned, waiting for more from you…

Ashish

Wow!
Akhil the scholar-soldier. Beautifully penned,
Now that you have come out of your comfort zone, pl follow Gen Gurmit’s diktat – 1 every four days.
Once again, beautifully penned, waiting for more from you…

Colonel Anjani Kumar

प्रिय अखिल,
ये आत्मानुभूति ही हम सभी को एक दूसरे से जोड़े हुए हैं, भले ही हमारा साथी आज शारीरिक रूप में साथ नहीं है लेकिन उसकी यादें हमें जोड़ रखा है। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सादर अभिवादन।।।