हेमन्त बावनकर
☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 12 ☆ हेमन्त बावनकर☆
अभी तो सूखे भी नहीं
वे आँसू
जिसने विदा किए थे
पल दर पल
एक के बाद एक
कितने ही रिश्ते
जाने अनजाने रिश्ते।
कई रिश्ते तो बचा गए
कुछ अनजान फरिश्ते
और
कुछ बदनसीब रिश्तों को
प्लास्टिक में लपटे कर
कंधा दे गए
पीपीई किट में
कुछ अनजान रिश्ते
और
इस तरह निभा गए
इंसानियत का फर्ज़
पता नहीं
किसके माथे था
न जाने किसका
किस जन्म का कर्ज़?
अभी तो सूखी भी नहीं
वह स्याही
जिससे लिखी थी
कई दर्द भरी कहानियाँ
जो आई थी
हर एक के हिस्से
जाने अनजाने, देखे सुने
इंसानियत के बेहिसाब किस्से।
बड़े अजीब
और हर दिल अजीज थे
वे अनजान रिश्ते
न हमने उनसे कभी पूछा
और
न उनने हमें कभी बताया
कि – क्या पढ़ निभाए थे
वे अनजान रिश्ते
गीता, गुरुग्रंथ साहिब, कुरान, बाइबल…
या ढाई अक्षर प्रेम के…!
आज चाहिए
कुछ जेसीबी और बुलडोजर
जो बना सके मज़बूत नींव
सर्वधर्म समभाव के पाठशाला की
पढ़ने-पढ़ाने ढाई अक्षर प्रेम के
जो बना सके मज़बूत नींव
दवाखानों की
ताकि इंसानियत सुकून से जी सके।
वक्त हर जख्म भर देता है
वरना
हम कैसे भूल जाते
इतनी जल्दी
वे इंसानियत के किस्से
वे अनजान रिश्ते ?
© हेमन्त बावनकर, पुणे
3 मई 2022
मो 9833727628
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सुंदर!!👌👌
हेमंत भाई, बेहतरीन भावपूर्ण रचना, मार्मिक अभिव्यक्ति बधाई
मार्मिक भावाभिव्यक्ति। 👍