श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘जिंदगी के मोड़। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 46 ☆

☆ जिंदगी के मोड़ 

जिंदगी जैसे जैसे आगे बढ़ती गयी,

तिलस्मी जिंदगी के रंग बदलते रहे ||

 

जिंदगी में खट्टे मीठे अनुभव होते रहे,

जिंदगी के हर मोड़ पर नए चौराहे आते रहे ||

 

हर चौराहे पर फिर नए मोड़ आते रहे,

हर चौराहै पर नए रास्ते मिलते रहे  ||

 

कुछ रास्ते आगे जाकर तिराहे में मिल गए,

आगे मोड़ पर ‘खतरा है’ लिखी तख्तियां देखते रहे ||

 

हम किसी भी खतरे से अनजान थे,

इधर आगे मोड़ पर खड्डे भी कुछ गहरे मिले ||

 

जिंदगी तिराहे से निकल दो राहे पर आ गयी,

कुछ भी समझ नहीं आया अब किस राह पर मुड़े ||

 

थोड़ा आगे एक एक सुनसान राह नजर आयी,

सुनसान राह पर बढ़े तो देखा आगे रास्ता बंद है ||

 

जिंदगी उधर ही जाती जिधर राह आसान नहीं होती,

थक गया सही राह ढूंढते, यह तो रास्ता ही आगे बंद है ||

 

किसी ने कंधे पर हाथ रख कर कहा,

तू गलत नही सही राह पर है, जिंदगी का रास्ता यहीं बंद है ||

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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