श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 46 ☆
☆ जिंदगी के मोड़ ☆
जिंदगी जैसे जैसे आगे बढ़ती गयी,
तिलस्मी जिंदगी के रंग बदलते रहे ||
जिंदगी में खट्टे मीठे अनुभव होते रहे,
जिंदगी के हर मोड़ पर नए चौराहे आते रहे ||
हर चौराहे पर फिर नए मोड़ आते रहे,
हर चौराहै पर नए रास्ते मिलते रहे ||
कुछ रास्ते आगे जाकर तिराहे में मिल गए,
आगे मोड़ पर ‘खतरा है’ लिखी तख्तियां देखते रहे ||
हम किसी भी खतरे से अनजान थे,
इधर आगे मोड़ पर खड्डे भी कुछ गहरे मिले ||
जिंदगी तिराहे से निकल दो राहे पर आ गयी,
कुछ भी समझ नहीं आया अब किस राह पर मुड़े ||
थोड़ा आगे एक एक सुनसान राह नजर आयी,
सुनसान राह पर बढ़े तो देखा आगे रास्ता बंद है ||
जिंदगी उधर ही जाती जिधर राह आसान नहीं होती,
थक गया सही राह ढूंढते, यह तो रास्ता ही आगे बंद है ||
किसी ने कंधे पर हाथ रख कर कहा,
तू गलत नही सही राह पर है, जिंदगी का रास्ता यहीं बंद है ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर