श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘दुनिया के दस्तूर । ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 47 ☆

☆ दुनिया के दस्तूर 

 

दुनिया के दस्तूर भी अजीब हैं,

जिनके लिए लड़ता रहा ताउम्र, मुझे देखते ही नजर फेर लेते हैं ||

 

अब तो मुस्कराने पर भी घबराने लगा हूँ,

मेरी मुस्कराहट को लोग अब नजरअंदाज कर देते हैं ||

 

अब कुछ भी बोलने से घबराता हूँ,

मैं सच बोलता हूँ तो लोग मुझे ही झूठा कहने लगते हैं ||

 

अब जब मैं चुप रहता हूँ ,

तो मेरे चुप रहने को लोग बुझदिली कहते हैं ||

 

मैं अब हंसने से भी घबराता हूँ,

मेरे हंसी को लोग बनावटी हंसी कहने लगते हैं ||

 

अपना दुख साँझा करने से भी ड़रता हूँ,

लोग मेरे दुखों का मजाक उड़ा दिल दुखाने लगते हैं ||

 

अब तो ख़ुशी जाहिर करने से भी घबराता हूँ,

ड़रता हूँ लोग मेरी खुशियों का भी मजाक उड़ाने लगेंगे ||

 

देखना एक दिन यूँ ही चला जाऊंगा,

लोग मेरे जाने को भी मजाक समझ मेरी हंसी उड़ाने लगेंगे ||

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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डॉ भावना शुक्ल

यथार्थ अभिव्यक्ति