श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण रचना  “जलो दिए सा….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 85 ☆ जलो दिए सा …. ☆

यदि जलना है जलो दिए सा,

    दिल की तरह कभी मत जलना।

चलना है तो चलो पथिक सा,

        तूफानों सा कभी न चलना।

दीप का जलना राह दिखाता,

      जग में प्रकाश  वो फैलाता है।

 दिल का जलना दुख देता,

   बर्बाद सभी को कर जाता है।।1।।

 

 पथिक का चलना तो राही को,

    उसकी मंजिल तक पहुंचाता है।

पर तूफानों का चलना तो,

      ग़म औ पीड़ा को दे जाता है।

अगर बरसना चाह रहे हो,

     बूंदें बन कर बरसों तुम।

 अपने नफ़रत का लावा,

     इस जग में कभी न फैलाना।।2।।

 

बूंदों का बरसना तो जग में,

      हरियाली खुशहाली लाता है।

नफ़रत का फूटता लावा तो,

    सारी खुशियां झुलसाता है।

यदि बनना है तो बीर बनों,

     निर्बल की रक्षा करने को।

अपनी ताकत का करो प्रदर्शन,

       जग की पीड़ा हरने को।।3।।

 

धोखेबाजी मक्कारी से,

    कायरता का प्रदर्शन मत करना।

 परमार्थ की राहों पे चलना,

       मरने से कभी न तुम डरना।

 परमार्थ की राह पे चलते चलते,

 इतिहास नया इक लिख जाओगे।

सारे जग की श्रद्धा का,

 केंद्र ‌बिंदु तुम बन जाओगे।।4।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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