श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 104 ☆

☆ वृक्षारोपण अभियान चला  ☆

ये मानव अपने स्वारथ में,

     निस दिन  जंगल काट रहा है।

खत्म कर रहा मेरा जीवन,

      सबको ही दुःख बांट रहा है।

जाने अंजाने ये मानव,

        पर्यावरण बिगाड़ रहा है।

ईंधन और इमारत खातिर,

    प्रतिदिन मुझे उजाड़ रहा है।।1।।

 

अगर, ना होंगे वृक्ष  धरा पर,

            छाया ना मिल पायेगी।

 सूरज की तपती किरणों से,

             ये धरती जल जायगी।

यदि, खत्म  हो गया इस जग से मै

            धरती बंजर बन जाएगी।

होंगे खत्म जीव धरती से,

              सृष्टि ही मिट जायेगी।।3।।  

 

जो बढ़ा प्रदूषण इस जग में,

                बरखा ना हो पायेगी।।

ताल पोखरें  सूखे होंगे,

    जल बिनु मछली मर जायेगी।

यदि खत्म हुई हरियाली जग से,

               जीवन ही मिट जायेगा।

हर तरफ करूण क्रंदन होगा ।।4।।

 

अब भी चेत अरे!ओ मानव,

        ना मुझसे व्यर्थ तू बैर बढ़ा।

 अगर चाहता हित सबका तो,

              तू दुनियां में  पेड़ लगा।

तूने संरक्षण दिया मुझे,

             तो मैं सबको जीवन दूंगा।

 वर्षा होगी हरियाली होगी,

    खुशियों से दामन भर दूंगा।।5।।

 

दूंगा मैं फल-फूल धरा को,

         पशुओं को चारा दूंगा।  

जड़ी बूटियां जग को दे

       जीवन को मैं संवारूगा।

हरियाली की चादर ताने,

          धरती को छाया दूंगा। 

नीरस जीवन रसमय करके,

     सबको जीवन प्यारा दूंगा।।6।।

 

इस लिए धरा पर हे मानव!

     तू प्रति दिन वृक्ष लगाता जा।

ऊसर बीहड़ बंजर धरती पर,

    खुशियों के फूल खिलाता जा।

मैं सबका ही आह्वान करता हूं,

        मुझको मीत बनाता जा।

वृक्षरोपण  अभियान चला

    वृक्षरोपण अभियान चला।।7।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

04–08–2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments