श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ सृजन शब्द – कविता ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा-कुण्डलिया)

कविता रचती जब चलूँ, शब्द पिरोती माल ।

भावों को संचित करू, शारद शोभित भाल ।।

शारद शोभित भाल, कृपा बरसा माँ दानी ।

कलम लिखे शुचि सार, बनूँ तब ही संज्ञानी ।।

कहती प्रेमा आज, काव्य रस बनकर सरिता ।

मन में जागे भाव, सृजित होती तब कविता ।।1!!

 

कविता लेखन तब सरल, छंदों का हो ज्ञान ।

नियम सूत्र सब हो पता, लिखे तभी रख ध्यान ।।

लिखे तभी रख ध्यान, जगत की प्यारी बेटी ।

दिखलाती है मर्म, जहाँ में सबसे भेटी ।।

कहती प्रेमा आज, गढ़े जब कोई नविता ।

रहते भाव  प्रधान, सजे तब प्रेमिल कविता ।।2!!

 

कविता मेरी तब सजी, अविरल धार प्रवाह ।

सुंदर मुखड़ा कृष्ण का, काव्य सजाती चाह ।।

काव्य सजाती चाह, योगिता होती  मोहित ।

मोर मुकुट जो शीश, अधर में बंसी शोभित ।।

कहती प्रेमा आज, रहे अंतस जो सविता ।

कर ऊर्जा  निर्माण, लिखूँ शृंगारित कविता ।।3!!

 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

मंडला, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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