श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 2 – परिंदो का आसमान ☆
ऐ परिंदो आसमान में दूर ऊपर कहां तुम जाते हो,
कौन वहां रहता है तुम्हारा, तुम किस से मिलने जाते हो ||
सर्दी गर्मी हो या बारिश, हर मौसम में रोज सवेरे जाते हो,
ऐसा वहां क्या करते हो, सब साथ शाम को लौटकर आते हो ||
यहां तो असंख्य पेड़ पौधे और तुम्हारा खुद का घरोंदा है,
क्या वहां भी पेड़ पौधे और घरोंदा है जो रोज वहां जाते हो ||
सुना है आसमान में स्वर्ग होता है, जो एक बार वहां जाता है,
लौट कर नहीं आता, तुम रोज स्वर्ग से वापिस कैसे आ जाते हो ||
मेरा छोटा सा एक काम कर दो, वहां माता-पिता मेरे रहते हैं,
पैर छू कर उनका आशीर्वाद ले आना, रोज जो तुम स्वर्गजाते हो ||
या फिर इतना सा कर देना, अदब से पंखों पर अपने उनको बैठा लाना,
एक बार जी भर के मिल लूँ फिर ले जाना, तुम तो रोज स्वर्ग जाते हो ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर
अच्छी रचना