श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता परिंदो का आसमान 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 2 – परिंदो का आसमान ☆

  

ऐ परिंदो आसमान में दूर ऊपर कहां तुम जाते हो,

कौन वहां रहता है तुम्हारा, तुम किस से मिलने जाते हो ||

 

सर्दी गर्मी हो या बारिश, हर मौसम में रोज सवेरे जाते हो,

ऐसा वहां क्या करते हो, सब साथ शाम को लौटकर आते हो ||

 

यहां तो असंख्य पेड़ पौधे और तुम्हारा खुद का घरोंदा है,

क्या वहां भी पेड़ पौधे और घरोंदा है जो रोज वहां जाते हो ||

 

सुना है आसमान में स्वर्ग होता है, जो एक बार वहां जाता है,

लौट कर नहीं आता, तुम रोज स्वर्ग से वापिस कैसे आ जाते हो ||

 

मेरा छोटा सा एक काम कर दो, वहां माता-पिता मेरे रहते हैं,

पैर छू कर उनका आशीर्वाद ले आना, रोज जो तुम स्वर्गजाते हो ||

 

या फिर इतना सा कर देना, अदब से पंखों पर अपने उनको बैठा लाना,

एक बार जी भर के मिल लूँ फिर ले जाना, तुम तो रोज स्वर्ग जाते हो ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना