श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 7 – याद ☆
माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची अक्सर याद आते हैं,
मायूस ऑंखें मजबूर हो सबको दुनिया से विदा होते देखती रह गयी ||
याद कर सबको बरबस आँखों से हर कभी आंसू निकल आते हैं,
दिल में ख्याल आता है सेवा में हमसे बहुत कमी रह गयी थी||
थोड़ी सेवा और कर लेते, ना करने की भी कोई मजबूरी ना थी,
काश! इलाज और करा लेते, पैसे की भी कोई कमी ना थी ||
मगर ये सब बातें अब अक्सर रोज दिल को कचोटती है,
माफ़ करना ऐसा कुछ ना करने की कोई भावना हमारी नहीं थी ||
आप सबसे एक ही विनती, माफ़ी स्वीकार कर लीजिए हमारी,
चाहे जो सजा दे देना पर चरणों में अपने ही हमें जगह देना ||
हम अंश आपके बुद्धिहीन नादान, माफ़ी के हरगिज नहीं हकदार,
रह गयी बहुत सेवा में कमी, नादान समझ हमें माफ़ कर देना ||
ना जाने सांसरिक जीवन में क्यों ऐसी कमियां रह जाती,
हाथ जोड़ विनती करते, हम भटकों को सही राह दिखा देना ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर
अच्छी रचना
जी धन्यवाद।