श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 8 – कहो तो चले अब ☆
उम्र अब मुझे झझकोरने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,
दबे पांव बीमारी संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||
उम्र अब मुझे कहलाने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,
शरीर पर पड़ती झुर्रियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब||
उम्र अब मुझे अहसास कराने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,
बैसाखियों के संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||
उम्र अब मुझसे रूठने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,
दिल मधुमेह जैसी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||
उम्र अब मुझ पर शिकंजा कसने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,
रोज नयी-नयी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||
उम्र जन्म से सांस संग जिस्म में घुसी थी, सामने तो कुछ नही कहती,
रोज अटकती साँस संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||
उम्र के उतार पर आकर थक गया, सामने तो अब कुछ नही कहती,
हालात से परेशां अब मैं खुद उम्र से कहता हूँ, तैयार हूँ कहो तो चले अब ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर