श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 11 – शब्द की गाथा ☆
शब्द में समाया है फलसफा जिंदगी का,
शब्द में समाया है गम, शब्द में ही भरी है खुशी,
शब्द से मिलती अथाह पीड़ा, शब्द से ही भरता घाव ।।
शब्द रिश्तों में उलझन पैदा कराता,
शब्द राह में कांटे बिछाता, शब्द ही राह में फूल बिछाता,
शब्द रिश्तों में कराता टकराव, शब्द बढ़ाता रिश्तों में प्यार ।।
शब्द-जाल मधुमक्खी का छत्ता,
शब्द अपनों में जहर घोलता, शब्द ही अपनों में मधु घोलता,
शब्द बनाता अपने को पराया, शब्द बनाता पराये को अपना।।
तोड़ दो शब्दों का भ्रमजाल,
शब्द से वाणी पर रहे संयम, शब्दों में हो सबका मान,
शब्दों के निकाल दो विष बाण, शब्दों में हो सिर्फ अमृत वाण।|
© प्रह्लाद नारायण माथुर
सुंदर रचना
श्याम जी आपका बहुत आभार एवं धन्यवाद।