श्री प्रहलाद नारायण माथुर
( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें सफर रिश्तों का तथा मृग तृष्णा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जीवन तो कुछ ऐसे बह गया)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 19 ☆ जीवन तो कुछ ऐसे बह गया ☆
जीवन तो कुछ ऐसे बह गया,
जैसे झरने से बेतहाशा बहता पानी ||
कल-कल का शोर ऐसा हुआ,
कभी समझ में नही आयी जिंदगानी ||
बारिश का दौर भी अब थम गया,
बहते झरने का जोश भी कुछ कम कम होने लगा ||
सरद मौसम भी आ गया,
झरना भी अब बर्फ की मोटी चादर सा जमने लगा ||
फिर गर्म हवा कुछ ऐसी चली ,
कल-कल बहता झरना अब बूंद-बूंद को तरसने लगा ||
समझ नही पाया तुझे ए जिंदगी,
बचपन और जवानी के बाद अब बुढापा सामने दिखने लगा ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर
8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈