श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता रिश्तों में जमी बर्फ। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 21 ☆ रिश्तों में जमी बर्फ

 

जिंदगी के हसीन पल यूँ ही जाया हो गए,

जीवन तो बस फालतू की बातों में ही बीत गया ||

 

जिन बातों की जिंदगी में अहमियत नही थी,

जीवन तो बस उन्हीं बातों में उलझ कर रह गया ||

 

जीवन में हर कोई मेरे दिल के करीब था,

बिना वजह तेरी-मेरी करने में रिश्ता रीत गया ||

 

जिंदगी में जो सबसे प्यारे और अजीज थे,

बेमतलब की बातों ने उन्हें ही पराया कर दिया ||

 

छोटी-छोटी फिजूल बातें हम समझ नही सके,

इन फिजूल बातों का पंच दिल में गहरा घाव कर गया ||

 

रिश्तों में जमी बर्फ पिघल जाती तो अच्छा था,

बर्फ तो पिघली नहीं मोम सा दिल पिघल कर बह गया ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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