श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता मंजर शहीद के घर का। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 23 ☆मंजर शहीद के घर का

कैसा मंजर होगा उस शहीद के घर का,

जिस घर से माँ का आशीर्वाद लेकर वो सरहद पर गया था ||

 

टिकट था मगर रिजर्वेशन नही मिला,

सरहद पर तत्काल पहुंचो कैप्टन का पैगाम आया था ||

 

अफ़सोस किसी ने उसकी एक ना सुनी,

रिज़र्वेशन कोच से बेइज्जत कर उसे नीचे उतार दिया ||

 

लोग तमाशाबीन बने देख रहे थे,

उन्होने भी उसे ही दोषी ठहरा कर अपमानित किया ||

 

जनरल डिब्बा ठसाठस भरा हुआ था,

किसी ने भी उसे बैठने क्या खड़ा भी नहीं होने दिया ||

 

सामान की गठरी बना गैलरी में बैठ गया,

पैर समेटता रहा, आते-जाते लोगों की ठोकरे खाता रहा ||

 

सरहद पर दुश्मन गोले बरसा रहा था,

उसे जल्दी पहुंचना जरूरी था इसलिए हर जिलालत सहता रहा ||

 

पत्नी की याद में थोड़ा असहज हो रहा था,

उसका मेहंदी भरा हाथ आँखों के सामने बार-बार आ रहा था ||

 

माँ का नम आँखों से उसे विदा करना,

माँ का कांपता हाथ उसे सिर पर फिरता महसूस हो रहा था ||

-2-

पिता के बूढ़े हाथों में लाठी दिख रही थी,

सिर टटोलकर आशीर्वाद देता कांपता हाथ उसे दिख  रहा था ||

 

पत्नी चौखट पर घूंघट की आड़ में उसे देख रही थी,

उसकी आँखों से बहता सैलाब वह नम आँखों से महसूस कर रहा था ||

 

दुश्मन के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया,

दुश्मन ने उसे पकड़ लिया और निर्दयता से सिर धड़ से अलग कर दिया ||

 

इतना जल्दी वापिस लौटने का पैगाम आ जाएगा,

विश्वास ना हुआ, बाहर भीड़ देखकर घर में सब का दिल बैठ गया ||

 

नई नवेली दुल्हन अपने मेहँदी के हाथ देखने लगी,

किसी ने खबर सुनाई उसका जांबाज पति देश के काम आ गया ||

 

कांपते हाथों से माँ ने बेटे के सिर पर हाथ फेरना चाहा,

देखा सिर ही गायब था, माँ-बहू का हाल देख पिता भी घायल  हो  गया ||

 

पिता ने खुद को संभाला फिर माँ-बहू को संभाला,

कांपते हाथों से सलामी दी, कहा फक्र है मुझे मेरा बेटा देश के काम आया ||

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Mahesh Mathur

पिता ने खुद को संभाला फिर माँ-बहू को संभाला,

कांपते हाथों से सलामी दी, कहा फक्र है मुझे मेरा बेटा देश के काम आया ||
एक बलिदान पर दोहरा बलिदान और।
हिम्मत उस परिवार की।
पाठक का तो शरीर कांंप उठा। यही है लेखक के कलम मेंं कल्पना का अवतरण।

प्रहलाद

भाई साहब आपको कविता पसंद आयी आपको बहुत धन्यवाद। जय हिंद।

subedar pandey kavi atmanand

भावपूर्ण हृदय स्पर्शी रचना अभिनंदन बधाई अभिवादन आदरणीय श्री

प्रहलाद

भाई साहब धन्यवाद।जय हिंद।।