श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 28 ☆ हे राम ! तुम नहीं आये ☆
हे राम ! तुम नहीं आये,
यहां हर गली-मौहल्लें चौराहे पर सैकड़ों रावण प्रकट हो गए,
हर वर्ष रावण को हम जलाते,
मगर जलकर पुर्नजीवित हो जाता, रावण कभी मरता नहीं||
हे कृष्ण ! तुम नहीं आये,
यहां हर चौराहे, हर गली- मौहल्लें में खुले आम चीरहरण होने लगे हैं,
रोकने की कोशिशे व्यर्थ जाती,
हैवानियत लोगों की बढ़ती जा रही, अब सब की इज्जत पर आ पड़ी ||
हे राम ! अब तो राम तुम आ जाओ,
यहां अब लक्ष्मण जैसा कोई भाई नहीं, यहां अब भाई-भाई दुश्मन है,
भाई-चारा वापस बढ़ाना है,
राम राज्य लाकर लक्ष्मण जैसे भाई बनने की सौगंध दिला जाओ ||
अब तो कृष्ण तुम आ जाओ,
यहां भाई-भाई कौरव हो गए हैं और घर-घर में महाभारत हो रही ,
अपने गीता के ज्ञान से,
भाई-भाई में प्यार-त्याग और सम्मान की शिक्षा का अलख जगा जाओ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर