श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “त्रासदियां”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – त्रासदियां ☆
काँप रही है धरा, डोल उठा है गगन ।
देख तांडव मौतों का, सिहर उठा है जीवन।
महामारियां हैं आ रही, टूटते पहाड़ हैं।
कभी बादल फट रहे, ये मौत की दहाड़ है।
ध्वस्त हुई बस्तियां, बिखर रही हैं लाशें।
मानवता रो रही, थम रही हैं सांसें।
प्रकृति क्रुद्ध हो रही, अपना धैर्य खो रही।
मानव की नादानियों का दंड प्रकृति दे रही।
अपने ही कुकर्मों का दंश, ये मानव झेल रहा।
समझ बूझ लुप्त हुई, मौत से वो खेल रहा।
काटता है बन जंगल, पर्वतों को तोड़ रहा।
बड़े बड़े बांध बना जल धारा मोड़ रहा।
रोक रोक जलधारा, नदियों को मार रहा।
पानी बिन मर रहा, मदद को पुकार रहा।
वन जंगल कटने से, वन्य जीव मर रहे।
खत्म हुई हरियाली, सपने बिखर रहे।
नित आंधियां है चल रही, बज्रपात हो रहा।
फ़ूटी सी किस्मत ले, ये मानव रो रहा।
प्रकृति और इंसान में, जंग मानों छिड़ गई।
प्रतिघात घात चल रहा, धरा अखाड़ा बन रही।
प्रकृतिजन्य आपदा का जनक मानव ही बना।
मिट रहा निज कर्म से, कर्म फल है भोगना।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अच्छी रचना