श्री प्रहलाद नारायण माथुर
( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें सफर रिश्तों का तथा मृग तृष्णा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ढूंढ रहा हूँ रफूगर । )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 36 ☆
☆ ढूंढ रहा हूँ रफूगर ☆
उधड़ गयी है जिंदगी चारों तरफ से,
पैबन्द जगह-जगह मैंने खुद लगाए,
अब हर तरफ पैबन्द लगी नजर आती है जिंदगी,
ढूंढ रहा शायद कोई रफूगर मिल जाए,
जो जिंदगी रफू कर दे,
जगह-जगह से उधड़ी हुई नजर आती है जिंदगी,
जितना सम्भल कर कदम रखता हूँ,
उतनी ही उलझ कर,
और ज्यादा उधड़ी हुई नजर आती है जिंदगी,
काश कोई रफूगर मिल जाता,
जो एक एक धागें को मिला,
रफू कर देता तो पहले सी नजर आ जाती जिंदगी,
फूलों की बगिया में कांटों से उलझ गया,
काश कांटों की जगह जिंदगी,
फूलों में उलझ जाती तो फूलों सी महक जाती जिंदगी ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर
8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈