श्री घनश्याम अग्रवाल
(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है कोरोना सन्दर्भ में आपकी होली की पूर्व संध्याओं पर – “भ्रष्टाचार के सात रंग” )
☆ कविता ☆ होली की पूर्व संध्याओं पर – “भ्रष्टाचार के सात रंग” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆
( 1 )
जब पेट ज्यादा
और रोटियां कम हों तो
कोई भी रोटी
न खरीदकर
न माँगकर
न कमाकर खाई जाती है,
तब हर रोटी
सिर्फ छीनकर खाई जाती है।
(2)
दुनिया में जब
एक आदमी भी
भूखा सोता है
तो भर-पेट खानेवाले
हम-तुम-सब
एक रात के लिए
आतंकवादी होते हैँ।
( 3 )
भ्रष्टाचार तो
रामराज में भी था
वरना,
रामराज जाता ही क्यूँ ?
सदा यही रहता।
न गांधीजी सपने देखते
न कोई पार्टी वादा करती।
( 4 )
टीवी देखती माँ
रोते बच्चे के मुंह में
थमा देती है
बजाय स्तन के
रबर का एक निप्पल।
( यह दुनिया का पहला भ्रष्टाचार है )
जिसे चूसते-चूसते
बच्चा सो जाता है,
और सुबह उठत़े ही
भ्रष्टाचारी हो जाता है।
( 5 )
कड़े से कड़ा कानून
आदमी को
बेईमानी करने से
रोक तो सकता है,
पर उसे
ईमानदार नहीं बना सकता।
” नजर हटी
कि दुर्घटना घटी। “
( 6 )
कसम खाकर
गवाह सच उगलता है,
मंत्री का चरित्र
रामचरित मे ढलता है,
कसम खाकर वर्दी
फर्ज निभाती है,
और बेशर्मो को भी
कसम खाने से
गर शर्म आती है,
तो लो हम भी कसम खाते हैं
” न रिश्वत लेंगे-न रिश्वत देंगे। “
( 7 )
बेताल के
इस सवाल पर
विक्रम से लेकर
ए से जेड तक
सभी मौन हैं,
जब सारा देश
भ्रष्टाचार के खिलाफ है
तब स्साला,
भ्रष्टाचार
करता कौन है ?
© श्री घनश्याम अग्रवाल
(हास्य-व्यंग्य कवि)
094228 60199
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈