श्री आलोक पाठक
जन्म – 1 सितंबर 1969
शिक्षा – एम कॉम एल एल बी
व्यवसाय – शासकीय सेवा
सम्मान – काव्य वर्तिका अलंकरण, प्रसंग काव्य शिरोमणि, मंथन साहित्यकार सम्मान, मां तुझे सलाम मुशायरा सम्मान, केंद्रीय हिंदी निदेशालय दिल्ली तथा हिंदी एवं भाषा विज्ञान विभाग रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा राष्ट्रीय शोध गोष्ठी सम्मान, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन प्रसंग अलंकरण सम्मान
☆ कविता ☆ हाँ मैं यशोधरा हूँ ……. ☆
( सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) के गृह त्याग पर कवि श्री अलोक पाठक जी की काव्यात्मक अभिव्यक्ति)
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ मुझे याद है जब
सिद्धार्थ ब्याह कर लाए थे
मेरी नवजीवन में कितने
सुगंधित पुष्प खिलाए थे
यथार्थ के धरातल से हटकर
अनगिनत स्वप्न दिखाए थे
वैवाहिक जीवन में मेरे
तभी तो राहुल आए थे
शांत और निर्लिप्त भाव का
मैं निश्छल सा पानी हूँ ….1
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ मैंने देखा सिद्धार्थ को
जरा जन्म से उलझते हुए
हाँ मैंने देखा सिद्धार्थ के
अंतर्मन को सुलगते हुए
क्यों चाहा प्रश्नों का उत्तर
शाश्वत सत्य समझते हुए
नव पथ के लिए त्यागा वैभव
निज कर्तव्य भटकते हुए
कुटिल रात्रि के बाद खिली हूँ
ऐसी भोर सुहानी हूँ …….2
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
क्या दोष था राहुल का
जो तुमने उसको त्याग दिया
उसके कोमल मन में तुमने
कैसा वज्राघात किया
पितृ सुख और प्रेम ना देकर
तुमने क्यों अवसाद दिया
क्या कोई अक्षम्य भूल थी
जिसका यह प्रतिसाद किया
ना जग समझा ना मैं समझी
ऐसी अमिट कहानी हूँ…3
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ सोचो ऐसा मैं करती
क्या संसार समझ पाता
सामाजिक आक्षेपों से क्या
आँचल मेरा बच पाता
दोषों पर दोषों से मेरा
नाम कलंकित हो जाता
नारी के आदर्शों का भी
खंडन मंडन हो जाता
छली गई हूँ एक ज्ञानी से
ऐसी मैं अज्ञानी हूँ…. 4
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
सिद्धार्थ जी के मन में तीन प्रश्न थे कि जन्म क्यों होता है? बुढ़ापा क्यों होता है और मृत्यु क्या होती है? यह तीनों प्रश्न वास्तव में प्रकृति से जुड़े हुए थे और मनुष्य के जीवन में हो रही घटनाओं से इनको जोड़ा जा सकता है। इन प्रश्नों का उत्तर सिद्धार्थ के लिए गए निर्णय से हो गया और यशोधरा ने अपने अनुभव के आधार पर यह उत्तर दिया कि राहुल का जन्म एक प्राकृतिक तथ्य है, पिता शुद्धोधन को सिद्धार्थ के वनवास से जो दारण दुख हुआ वही वास्तव में उनका बुढ़ापा है। मनुष्य के जीवन में जब जीने की कोई चाह ना बचे तब वह वृद्धावस्था का ही द्योतक होता है अन्यथा आदमी कितना भी वृद्ध हो जाए यदि उसका मन युवा है तो वह युवा ही रहता है। तीसरा प्रश्न यशोधरा का स्वयं का जीते जी मर जाना क्योंकि सिद्धार्थ के जाने के बाद युवावस्था में हुए इस घटनाक्रम से उनके जीवन में कुछ भी शेष नहीं रहा। उनका सब कुछ सिद्धार्थ के होने पर ही था और जब वही चले गए तो वह महल वह विलास की वस्तु उनके लिए महत्वहीन थी। एक नारी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यही है कि उसे अपने पति के सानिध्य में जीवन बिताने का अवसर प्राप्त हो यद्यपि सिद्धार्थ ने स्वयं के प्रश्नों के हल के लिए घर छोड़ा था किंतु उससे यशोधरा, राहुल और शुद्धोधन ही नहीं बल्कि पूरा साम्राज्य प्रभावित हुआ और एक परिवार में अनिश्चय की स्थिति निर्मित हुई। सिद्धार्थ अपने प्रश्नों का उत्तर तो पा सके किंतु राहुल यशोधरा और शुद्धोधन जो उन पर आश्रित थे उनके जीवन में आए झंझावात से उत्पन्न प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके और अंततोगत्वा राहुल, यशोधरा और शुद्धोधन ने भी सन्यास धारण कर लिया। इस पूरे घटनाक्रम में यशोधरा के जीवन से सिद्धार्थ के तीन प्रश्नों का उत्तर रचना के अंतिम बंद में लिखने का प्रयास किया है –
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
हाँ उन प्रश्नों का उत्तर
आज तुम्हें मैं देती हूँ
कर सको यदि सहन तुम
अपना अनुभव कहती हूँ
दाम्पत्य सुख से जन्मा राहुल
यह प्रथम प्रश्न का पक्ष हुआ
आहत शुद्धोधन के मन से
द्वितीय प्रश्न भी दक्ष हुआ
मरण हुआ जीते जी मेरा
मैं तीसरी प्रश्न कहानी हूँ
हाँ मैं यशोधरा हूँ
एक रानी हूँ
© श्री आलोक पाठक
693, भालदारपुरा, जबलपुर – 482 002 मो- 98273 58121