हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हे मातृ भूमि ! ☆– श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”
श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”
☆ हे मातृ भूमि! ☆
है क्यों घमासान?
तेरे आँचल में,
सभी तेरे लाल हैं,
फिर क्यों है,
कोई हरा, कोई नीला, कोई भगवे रूप में,
कभी, सभी….,
तेरे लिए लड़ते थे, अब,
सभी आपस में लड़ते हैं,
बदनाम तेरे आँचल को करते हैं,
तेरे पुत्र नहीं,
कुछ पराये से लगते हैं,
पैदा कर कुछ ऐसा भूचाल,
हो जायें सारे आडम्बरी बेहाल,
दुनिया सारी अचंभित हो जाये,
पड़ोसी भी थर्रा जाये,
वीरों का खून भी,
अब खौलता है,
सफेदपोश भी,
बे-तुका सा बोलता है,
हे मातृ भूमि,
क्युं अब कोई…… महात्मा जैसा,
क्युं अब कोई……. अम्बेडकर जैसा,
क्युं अब कोई…….. टैगौर जैसा,
क्युं अब कोई………. पटेल जैसा,
जन्म नही लेता,
तेरी कोख से,
हे मातृ भूमि,
कर दे कुछ ऐसा,
सभी में हो,
देश भक्ति भाव,
एक जैसा……वंदे मातरम…..!
© माधव राव माण्डोले “दिनेश”, भोपाल
(श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश”, दि न्यू इंडिया एश्योरंस कंपनी, भोपाल में सहायक प्रबन्धक हैं।)