श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना हर दिल कहीं न कहीं बहुत ग़मज़दा सा है…)

☆ ग़ज़ल – हर दिल कहीं न कहीं बहुत ग़मज़दा सा है… ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

दिल से दिल का रिश्ता जोड़  कर देखो।

अमनों चैन की   तरफ मोड़  कर देखो।।

[2]

नफरतों को करो जरा अलविदा दिल से।

महोब्बत का   लबादा ओढ़  कर देखो।।

[3]

बहुत प्यारी जिंदगी अमानत ऊपर वाले की।

बात गलत जो भी हो जरा छोड़ कर देखो।।

[4]

बाँटने से तो खुशियाँ दुगनी हो जाती हैं।

ये हँसी ठहाके जरा तुम फोड़ कर देखो।।

[5]

बहुत सबाब मिलता   मिल बांट कर खाने में।

किसीकी खुशी लिए चादर सिकोड़ कर देखो।

[6]

हर दिल कहीं न कहीं बहुत ग़मज़दा सा है।

तुम किसी का दर्द जरा  निचोड़ कर देखो।।

[7]

हंस दुनिया आनी जानी इक़ सराय ही तो है।

तुम  दिलों की गाँठ का धागा तोड़ कर देखो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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