श्री संजीव अग्निहोत्री
हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया हैं। आज प्रस्तुत है श्री संजीव अग्निहोत्री जी की प्रस्तुति “ इंद्रधनुष ”।
☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ इंद्रधनुष ☆
सात सुर भी नहीं सरगम में रह पाते,
शाख़-शाख़ अलग,वृक्ष से यही नाते ?
अब तो पड़ चुका है,आँख पे शक का पर्दा
दुआ- सलाम है,पर खुल के मिल नहीं पाते.
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ये कौन हैं जो ज़हर,आबो-हवा को देते
मसलते अमन को,शोलों को हवा दे देते
और एक हम हैं,जो बिछाए गये जालों में
कुछ बिना सोचे,परिंदों की तरह फँस जाते.
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कहीं तो जाति धर्म चौसर की गोटी हैं
ये इनका खेल है,ये सेंक रहे रोटी हैं
हमारे प्रेम के पौधे को ज़हर से सींचा
नज़र में ताज है, ये चाल बड़ी खोटी है.
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हैं भारतीय सभी,इंद्रधनुष धारी हैं
है सात रंग,मगर आसमाँ पे भारी हैं
बड़े जतन से सम्भाला हुआ,ये गुलशन है
जो ताज ओ तख़्त की है दुश्मनी, तुम्हारी है.
© श्री संजीव अग्निहोत्री
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈