हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव

डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव 

☆ शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं ☆

(प्रस्तुत है डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी की कविता “शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं”।  संयोगवश आज ही के अंक में भगवान  शिव जी परआधारित  श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की एक और रचना “वह दूर हैं शिवालय, शिवका मुझे सहारा” प्रकाशित हुई है। दोनों ही कविताओं के भाव विविध हैं। दोनों कविताओं के सममानीय कवियों का हार्दिक आभार।)

 

विष पी पी मैं हूँ नील कंठ बना।

विष पी कर ही प्रेम के सूत्र बना,

मैं जग में प्रेम अमर कर जाऊंगा।।

शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं।

 

विष पी पीकर मैं ही शेषनाग बना,

मैं भू माथे पर धारण कर जाऊंगा।

धरती धर खुद को निद्राहीन बना,

मैं मेघनादों का वध कर जाऊंगा।।

शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं।

 

मैं रवि टूट टूट ग्रह तारे नक्षत्र बना,

नभ मंडल आलोकित कर जाऊंगा।

पी वियोग ज्वाला मैं पृथ्वी चंद्र बना,

शीतल हो श्रृष्टि सृजन कर जाऊंगा।।

शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं।

 

नफरत पी पी कर मैं अग्नि बना,

वन उपवन नगर दहन कर जाऊंगा,

पी पी मैं लोभ द्वेष बृहमास्त्र बना,

अरि दल पल में दहन कर जाऊंगा।।

शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं।

 

संयोग वियोग अभिसार से जीव बना,

मैं ही नियंता सर्जक बृहमा बन जाऊंगा।

उर पढ़ पढ़ मैं ही असीम ज्ञान बना,

मैं वेद पुराण उपनिषद बन जाऊंगा।।

शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं।

 

प्रणय तपस्या में राधा की कृष्ण बना,

श्रृष्टि पालक नारायण मैं बन जाऊंगा।

मैं क्षिति जल पावक गगन समीर बना,

अणु परमाणु बृहम ईश्वर बन जाऊंगा।।

शिवो अहं शिवो अहं शिवो अहं।

 

© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव