महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६७॥ ☆
तस्योत्सङ्गे प्रणयिन इव स्रस्तगङ्गादुकूलां
न त्वं दृष्ट्वा न पुनर अलकां ज्ञास्यसे कामचारिन
या वः काले वहति सलिलोद्गारम उच्चैर विमाना
मुक्ताजालग्रथितम अलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम॥१.६७॥
कैलाश के अंक में प्रियतमा सम
पड़ी स्त्रस्तगंगादुकूला वहाँ है
जिसे देखकर मित्र ! हे कामचारी
न होगा तुम्हें भ्रम कि अलका कहाँ है ?
उँचे भवन शीर्ष से शुभ्र शोभित
सजी घन जलद माल से उस समय जो
दिखेगी कि जैसे कोई कामिनी
मोतियों की लड़ी से गुंथाये अलक हो
इति मेघदूतम् पूर्वमेघः।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈