महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.१८॥ ☆
तन्मध्ये च स्फटिकफलका काञ्चनी वासयष्टिर
मूले बद्धा मणिभिर अनतिप्रौढवंशप्रकाशैः
तालैः शिञ्जावलयसुभगैर नर्तितः कान्तया मे
याम अध्यास्ते दिवसविगमे नीलकण्ठः सुहृद वः॥२.१८॥
प्रविशिती हुई देखकर जालियों से
सुधा सदृश शीतल सुखद चंद्र किरणें
परिचित पुराने सुखद अनुभवों से
मुड़ उस तरफ पर तुरत मूंद पलकें
अति खेद से अश्रुजल से भरे नैन
मुंह फेरती क्लाँत मेरी प्रिया को
लखोगे घनाच्छन्न दिन में धरा पर
न विकसित, न प्रमुद्रित कमलिनी यथा हो
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈