महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४३॥ ☆
श्यामास्व अङ्गं चकितहरिणीप्रेक्षणे दृष्टिपातं
वक्त्रच्चायां शशिनि शिखिनां बर्हभारेषु केशान
उत्पश्यामि प्रतनुषु नदीवीचिषु भ्रूविलासान
हन्तैकस्मिन क्वचिद अपि न ते चण्डि सादृश्यम अस्ति॥२.४३॥
श्यामालता मे सुमुखि अंग की कांति
हरिणी नयन मे नयन खोजता हूं
मुख चंद्र में बर्हि में केश का रूप
जल उर्मि मे बंक भ्रू सोचता हॅू
पर खेद है मैं किसी एक में भी
तुम्हारी सरसता नहीं पा सका हूं
तरसता रहा हॅू सदा प्रिय परस को
तुम्हारे दरश भी नहीं पा सका हॅू
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈