हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ नदी हूँ मैं ☆ – डॉ भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

☆ नदी हूँ मैं ☆

 

(प्रस्तुत  है डॉ भावना शुक्ल जी की एक भावप्रवण कविता ☆ नदी हूँ मैं ☆)

नदी हूं मैं !
बहती हूं
अनवरत
चारों दिशाओं में
मैं हूँ सेवा में रत
राह में धीरे-धीरे
बहती हो प्रवाह में
अविरल
शांत निर्मल जल
पावन है गंगाजल
सुंदर वादियों के आसपास निकलती हूँ
लहराती बलखाती सी चलती हूँ
चलती हूँ तट पर सुंदरता बिखराती हूँ
बहुत कुछ सहती हूँ
बढ़ती हूं आगे
कभी पथरीले
कभी रेतीले
कभी उबड़-खाबड़
कभी पहाड़ के रास्तों से
कभी पहाड़ के रास्तों से गुजरती हूं
कभी बहाव तेज तेज
कभी धीमा
कभी बाढ़
कभी कभी तबाही
कभी कंपन्न
होता है सब छिन्न-भिन्न
फिर भी रखना है हौसला
यही है किस्मत का फैसला
राह में आयें
कितनी भी बाधाएं
कितनी समस्याएं
मुझे पथ पर बहना है
सब कुछ सहना है
एक नारी की तरह
तप, त्याग, विश्वास की भरती रहेगी सबकी गागर
होगा मिलन एक  दिन मुझसे सागर
बहते हुए बीत गई सदी
हूं मैं एक नदी
हूं मैं एक नदी…………
© डॉ भावना शुक्ल